Sunanda Aswal

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वार्षिक प्रतियोगिता हेतु कविताएं


विधा: कविता
शीर्षक: आम आदमी

आम आदमी की डगर,ना ऊंची -नीची ,
ना टेढ़ी-मेढ़ी , गुजरती सीधी -सादी ..!

जद्दोजहद रोटी,कपड़ा मकान ,
थककर, चैन से सोती मेहनत आंगन..! 

चांदी की चमक -दमक में झूले स्वप्न ,
नींद उठते ही चारपाई से दौड़ती निरंतर.!

आदेशों का निर्वाहन ,बोझ भारी ढोती,
ख्वाहिशों के कलेंडर की तारीख पलटती..!

आम रास्ते ,आम गलियों से गुजरती ,
भीड़ से निकलती, पहचान वो खोती ..!

कभी,
जब वी.आई.पी.की गाड़ी बगल से जाती,
घंटो धूप में तपती,एक झलक पाने तकती.!

कभी,
मंच में जब कभी बड़ा खास आता आदमी,
वो जोर -जोर  ताली बजाती ,खुश होती ..।

कभी, 
बेबस भूखे आम आदमी को तड़प लगती, 
रोटी की चोरी करता,उसे भीड़ खूब धोती..!

आम आदमी की पहचान यह है ...
जीवन का यथार्थ सत्य वही है ..!!

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सुनंदा ☺️


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